24 March 2015

‘ब्लैक मनी’ को ‘बैक डोर’ से एंट्री की तैयारी में मोदी

चुनावी रैली में 56 इंच का सीना ठोंक कर विदेशों में जमा सारा काला धन देश लाने और हर देशवासी के खाते में 15 लाख रुपये पहुंचाने का दम भरने वाले नरेंद्र मोदी की सरकार ब्लैक मनी को बैक डोर से एंट्री देने की तैयारी में है। सरकार एमनेस्टी स्कीम लाए बिना ही काली कमाई करने वालों को विदेशों से अपना काला धन लाने का मौका देने जा रही है। केंद्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली ने किसी आम माफी योजना की तो घोषणा नहीं की, लेकिन काला धन रखने वालों पर कड़ी कार्रवाई करने से पहले उन्हें सामान्य जुर्माना और निर्धारित टैक्स जमा कर अवैध धन को सिस्टम में लाने का एक मौका जरूर दे दिया है। अधिकारियों का कहना है कि यह कठोर कानून तो विधेयक के पारित होने और उसके अधिसूचित होने के बाद लागू होगा। उसमें कुछ दिन की अवधि भी घोषित होगी, जिसमें बिना भारी जुर्माने और सजा के संपत्ति घोषित की जा सकती है। अभी या उस समय कोई भी चाहे तो विदेशों में जमा अघोषित आय पर महज 30 फीसदी का कर और कुछ जुर्माना देकर बचा जा सकता है। बाद में तो जेल जाना तय है। वित्त मंत्रालय के अधिकारियों का इस बारे में बताना है कि जेटली का संदेश बिल्कुल स्पष्ट है कि अभी से तैयारी रखी जाए, ताकि जैसे ही यह विधेयक कानून का रूप ले, दोषियों के खिलाफ कार्रवाई शुरू की जाए।

नोकिया का प्लांट फिर शुरू कराना चाहती है सरकार

मेक इन इंडिया को बढ़ावा देने के लिए मोदी सरकार जहां मैन्यूफेक्चरिंग सेक्टर में नई फैक्टरियां भारत में खोलने का आह्वान कंपनियों से कर रही है, वहीं किसी कारण से देश में अपना प्लांट बंद करने वाली कंपनियों को संयंत्र दोबारा चालू करने के लिए मनाने की कवायद भी चल रही है। इसी के तहत नोकिया के चेन्नई में बीते वर्ष बंद हुए प्लांट को फिर से शुरू कराने का प्रयास किया जा रहा है। हालांकि नोकिया को अब बिल गेट्स की कंपनी माइक्रोसॉफ्ट खरीद चुकी है और उसके मोबाइल भी अब माइक्रोसॉफ्ट ब्रांड के तहत बेचे जा रहे हैं।
माना जा रहा है कि इस कदम से सरकार जहां देश में विनिर्माण को बढ़ावा दे सकेगी वहीं इससे रोजगार सृजन में भी उसे मदद मिलेगी। केंद्रीय वाणिज्य व उद्योग मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा है कि देश में मैन्यूफेक्चरिंग को बढ़ावा देने और विदेशी निवेश को लेकर सकारात्मक माहौल तैयार करने के लिए सरकार नोकिया प्लांट के बंद होने जैसी घटनाओं के दोहराने के कतई पक्ष में नहीं है। सरकार चेन्नई स्थित नोकिया प्लांट के बंद होने को लेकर काफी चिंतित है और इस मामले में जल्द ही कुछ फैसला किया जा सकता है। सीतारमण ने कहा कि प्रधानमंत्री स्वयं नोकिया मामले पर अपनी प्रतिक्रिया दे चुके हैं और वह आश्वस्त हैं कि नोकिया के मामले में कुछ किया जाएगा और हमलोग नोकिया जैसी घटनाओं को दोहराने से रोकने के लिए काफी मेहनत कर रहे हैं। उन्होंने यह भी कहा कि नोकिया की बंद फैक्ट्री को फिर से शुरू करने के विकल्प पर भी विचार किया जा सकता है। वर्ष 2006 में चेन्नई में नोकिया का प्लांट शुरू किया गया था और पिछले साल नवंबर में इसे बंद कर दिया गया। इस प्लांट में 8,000 लोगों को प्रत्यक्ष तौर पर रोजगार मिला हुआ था तो लगभग 25,000 लोग इस प्लांट से अप्रत्यक्ष रूप से जुड़े हुए थे। इस माह के पहले सप्ताह में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नोकिया प्लांट को फिर से चालू करने के संकेत दिए थे।  नोकिया के प्लांट में हैंडसेट बनाए जाते थे।
वाणिज्य व उद्योग मंत्री निर्मला सीतारमण ने जल्द ही नई विदेश व्यापार नीति लाए जाने की संभावना जताई है। उन्होंने कहा कि नई विदेश व्यापार नीति काफी विस्तृत तरीके से तैयार की गई है। हालांकि उन्होंने विदेश व्यापार नीति की घोषणा को लेकर कोई निश्चित समय नहीं बताया। प्रैल के दूसरे सप्ताह तक नई विदेश व्यापार नीति का ऐलान किया जा सकता है। पिछले तीन महीने से निर्यात में लगातार होने वाली गिरावट के बाद निर्यातक अब बेसब्री से विदेश व्यापार नीति का इंतजार कर रहे हैं।

23 March 2015

जरा याद करो कुर्बानी!

शहीद ए आजम भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव के शहीद दिवस पर उनके ही एक क्रांतिकारी साथी राम प्रसाद 'बिस्मिल' की एक कविता काबिले गौर है। उर्दू भाषा में मुखम्मस शैली में लिखी गई यह कविता देश पर मर मिटने केअमर शहीदों के जज्बे को मर्मस्पर्शी ढंग से पेश करती है।

हम भी आराम उठा सकते थे घर पर रहकर,
हमको भी पाला था मां-बाप ने दुख सह-सहकर,
वक़्ते-रुख़सत उन्हें इतना ही न आए कहकर,
गोद में आंसू कभी टपके जो रुख़ से बहकर,
तिफ़्ल उनको ही समझ लेना जी बहलाने को!

देश-सेवा ही का बहता है लहू नस-नस में,
अब तो खा बैठे हैं चित्तौड़ के गढ़ की क़समें,
सरफ़रोशी की, अदा होती हैं यो ही रस्में,
भाई ख़ंजर से गले मिलते हैं सब आपस में,
बहने तैयार चिताओं में हैं जल जाने को!

नौजवानो, जो तबीयत में तुम्हारी खटके,
याद कर लेना कभी हमको भी भूले-भटके,
आपके अजबे-बदन होवें जुदा कट-कट के,
और सद चाक हो, माता का कलेजा फट के,
पर न माथे पे शिकन आए, क़सम खाने को!

अपनी क़िस्मत में अज़ल ही से सितम रक्खा था,
रंज रक्खा था, मिहन रक्खा था, ग़म रक्खा था,
किसको परवाह थी, और किसमें ये दम रक्खा था,
हमने जब वादी-ए-गुरबत में क़दम रखा था,
दूर तक यादे-वतन आई थी समझाने को!

अपना कुछ ग़म नहीं लेकिन ये ख़याल आता है,
मादरे हिंद पे कब से ये ज़वाल आता है,
देशी आज़ादी का कब हिंद में साल आता है,
क़ौम अपनी पे तो रह-रह के मलाल आता है,
मुंतज़िर रहते हैं हम ख़ाक में मिल जाने को!

मैक़दा किसका है, ये जामो-सबू किसका है?
वार किसका है मेरी जां, यह गुलू किसका है?
जो बहे क़ौम की ख़ातिर वो लहू किसका है?
आसमां साफ़ बता दे, तू अदू किसका है?
क्यों नये रंग बदलता है ये तड़पाने को!

दर्दमंदों से मुसीबत की हलावत पूछो,
मरने वालों से ज़रा लुत्फ़े-शहादत पूछो,
चश्मे-मुश्ताक़ से कुछ दीद की हसरत पूछो,
जां निसारों से ज़रा उनकी हक़ीक़त पूछो,
सोज़ कहते हैं किसे, पूछो तो परवाने को!

बात सच है कि इस बात की पीछे ठानें,
देश के वास्ते कुरबान करें सब जानें,
लाख समझाए कोई, एक न उसकी मानें,
कहते हैं, ख़ून से मत अपना गिरेबां सानें,
नासेह, आग लगे तेरे इस समझाने को!

न मयस्सर हुआ राहत में कभी मेल हमें,
जान पर खेल के भाया न कोई खेल हमें,
एक दिन को भी न मंजूर हुई बेल हमें,
याद आएगी अलीपुर की बहुत जेल हमें,
लोग तो भूल ही जाएंगे इस अफ़साने को!

अब तो हम डाल चुके अपने गले में झोली,
एक होती है फ़कीरों की हमेशा बोली,
ख़ून से फाग रचाएगी हमारी टोली,
जब से बंगाल में खेले हैं कन्हैया होली,
कोई उस दिन से नहीं पूछता बरसाने को!

नौजवानो, यही मौक़ा है, उठो, खुल खेलो,
खि़दमते क़ौम में जो आए बला, तुम झेलो,
देश के सदके में माता को जवानी दे दो,
फिर मिलेंगी न ये माता की दुआएं, ले लो,
देखें कौन आता है, इर्शाद बजा लाने को!

कब सुलझेगी मोबाइल रेडिएशन से हो रही बीमारियों की गुत्‍थी

कॉरपोरेट सेक्टर किस तरह से अपने प्रतिकूल चीजों को दबवाता या ठंडे बस्ते में डलवा देता है इसका एक और उदाहरण मोबाइल रेडिएशन के मामले में देखने को मिल रहा है। मोबाइल फोन और टावरों से निकलने वाले विकिरण के चलते कैंसर, ट्यूमर, माइग्रेन और मानसिक विकार की बढ़ती लगातार बढ़ती शिकायतों के बावजूद तमाम वैज्ञानिक संस्‍थाओं की ओर से इस मसले पर क्लीन चिट मिली हुई है। 
मोबाइल के इस्तेमाल से स्वास्थ्य पर बुरे प्रभाव पड़ने को लेकर देश-दुनिया में जारी बहस के बीच देश में एडवांस मेडिकल रिसर्च करने वाले संस्थान इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (आईसीएमआर) ने इस आशंका को नकार दिया है। आईसीएमआर का कहना है कि इस बात के कोई प्रमाण नहीं मिले हैं कि मोबाइल फोन का ज्यादा इस्तेमाल सेहत को नुकसान पहुंचाता है। मोबाइल फोन और टावरों से सेहत पर पड़ने वाले कुप्रभावों का मसला हाल ही में संसद में भी उठा। बजट सत्र के दौरान इस बारे में सदन में पूछे गए एक सवाल के जवाब में स्वास्थ्य और परिवार कल्याण राज्य मंत्री श्रीपाद नाइक ने आईसीएमआर के अध्ययन का हवाला देते हुए बताया है कि रिपोर्ट के मुताबिक मोबाइल फोन के इस्तेमाल किसी प्रकार की शारीरिक या दिमागी बीमारी होने के कोई  प्रमाण नहीं मिले हैं।  
नाइक ने अपने जवाब में बताया कि आईसीएमआर रिपोर्ट के अनुसार इस बात के वैज्ञानिक प्रमाण नहीं हैं कि मोबाइल फोन से निकलने वाले विद्युत चुंबकीय विकिरण (इलेक्ट्रो मैग्नेटिक रेडिएशन) के  कारण कैंसर, ट्यूमर, मानसिक असंतुलन, पागलपन, सिरदर्द की समस्या होती या डीएनए पर इसका असर पड़ता है। मोबाइल फोन और मोबाइल टावरों के चलते लोगों के स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ने की धारण भ्रामक प्रचार के चलते प्रचलित हुई है और इसका कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है। दुनिया के कई देशों में विभिन्न स्वास्थ्य निकायों की ओर से किए गए स्वतंत्र वैज्ञानिक अध्ययनों में भी अबतक इन आरोपों के सच होने का कोई मामला समाने नहीं आया है। यहां तक कि विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्लूएचओ) की ओर से वर्ष 2006 में जारी एक रिपोर्ट में कहा गया है कि इस बात का विश्वसनीय प्रमाण नहीं है कि वायरलेस नेटवर्क और उसके बेस स्टेशनों से निकलने वाली इलेक्ट्रोमैग्नेटिक रेडियो तरंगों का स्वास्थ्य पर कोई प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। 
यहां गौरतलब यह है कि वर्ष 2000 से लेकर 31 मई 2011 तक प्रकाशित रिपोर्टों के आधार पर डब्लूएचओ ने वायरलेस फोन से निकलने वाली तरंगों को संभावित कैंसरकारक समूह 2बी श्रेणी में रखा है। इसे देखते हुए भारत सहित दुनिया के कई देशों ने सेल फोन से निकलने वाली इलेक्ट्रोमैग्नेटिक तरंगों को लेकर सुरक्षात्मक दिशा-निर्देश तैयार किए हैं। भारत में भी यह मानक तैयार किए गए हैं, जो इंटरनेशनल कमीशन ऑन नॉन-आयनाइजिंग रेडिएशन प्रोटेक्शन (आईसीएनआईआरपी) की सिफारिशों पर आधारित हैं और इन्हें डब्लूएचओ की स्वीकृति भी प्राप्त है।

22 March 2015

पेट्रोल पंप मालिकों के लिए आफत बना मोदी का स्वच्छ भारत अभियान

प्रधानमंत्री नरेंद्र स्वच्छ भारत अभियान की ओर से शुरू किया गया स्वच्छ भारत अभियान पेट्रोल पंप चलाने वाले डीलरों के लिए आफत बन गयाहै। इस अभियान की आड़ में तेल कंपनियों के अधिकारियों ने पंप मालिकों से वसूली शुरू कर दी है। डीलरों का कहना है कि स्वच्छ भारत अभियान का हवाला देकर अब जरा-जरा सी बात पर उन पर जुर्माना लगाया जा रहा है और सात-सात दिन तक के लिए पंप बंद करा दिया जा रहा है। इसके चलते उन्हें कारोबार में भारी नुकसान उठाना पड़ रहा है। इसके विरोध में शनिवार (21 मार्च 2015) को देर शाम देश भर के पेट्रोल पंपों पर 15 मिनट के लिए ब्लैक आउट किया। इसके अलावा पंप संचालको ने 31 मार्च को पेट्रोल-डीजल डिपो से नहीं उठाने की घोषणा भी की है।
आल इंडिया पेट्रोलियम डीलर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष अजय बंसल ने यहां शुक्रवार को बताया कि सरकार की नीति डीलर विरोधी हो गई है। उनके कुछ गलत निर्णयों की वजह से डीलरों को भारी नुकसान हो रहा है। इसके विरोध में शनिवार को देर शाम आठ से सवा आठ बजे तक इंडियन ऑयल, भारत पेट्रोलियम और हिन्दुस्तान पेट्रोलियम के सभी पेट्रोल पंपों पर बत्ती बुझा कर विरोध जताया जाएगा। इस दौरान डीजल-पेट्रोल की बिक्री भी नहीं होगी। इसके बाद 31 मार्च को कोई भी डीलर संबंधित कंपनी के डिपो से डीजल-पेट्रोल नहीं उठाएंगे।
उनका कहना है कि स्वच्छ भारत अभियान के तहत सभी पेट्रोल पंप पर शौचालय बनवाया गया है, यह तो अच्छी बात है लेकिन इसमें कहीं गंदगी पाए जाने पर या दरवाजे की चिटकिनी टूटी होने पर 25 हजार रुपये का जुर्माना हो रहा है। दूसरी गलती पर सात दिन के पंप बंद कर दिया जाता है। उनका कहना है कि देश के 83 फीसदी पंप पर न तो वाटर कनेक्शन है न ही सीवर कनेक्शन। ऐसे में साफ सफाई की चकाचक व्यवस्था टेढ़ी खीर है। इसलिए सरकार नियम बदले। इसके अलावा डीलरों की कुछ और मांगे भी हैं।

स्टार्टअप कंपनियों के लिए खुलने वाली है आईपीओ की राह

नया कारोबार शुरू करने वाली कंपनियों (स्टार्टअप) के लिए देश के वित्तीय बाजार से पूंजी उठाने की राह आसान होने जा रही है। बाजार नियामक भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी)अगले तीन-चार माह में बाजार में इन कंपनियों के आईपीओ लाने के लिए नियम जारी कर सकता है।
सेबी के चेयरमैन यूके सिन्हा ने बताया कि ऐसी कंपनियों के साथ 27 मार्च को एक बैठक बुलाई गई है। इस बैठक में विचार-विमर्श के बाद नई कंपनियों के आरंभिक सार्वजनिक निर्गम (आईपीओ) के नियम तय करने के लिए एक चर्चा पत्र पेश किया जाएगा। इन सारी प्रक्रियाओं से गुजरते हुए तीन-चार महीने में स्टार्टअप कंपनियों के आईपीओ के दिशा-निर्देश (गाइड लाइन) जारी किए जा सकते हैं। सिन्हा ने यह जानकारी रीयल एस्टेट इन्वेस्टमेंट ट्रस्टों (आरईआईटी) को लेकर आयोजित एक सम्मेलन के बाद दी। सूत्रों का बताना है कि ई-कॉमर्स सहित नया कारोबार शुरू करने वाली कई कंपनियां आईपीओ के नियमों में ढील चाहती हैं। इसके लिए यह कंपनियां लॉबिंग भी कर रही हैं।

दिल तोड़ गई मोदी के ‘मन की बात’


प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश के किसानों से आज ‘मन की बात’ की। उन्होंने बेमौसम बारिश में चौपट हुई फसलों से बर्बादी के कगार पर खड़े किसानों को आश्वासनों की घुट्टी पिलाई। मोदी ने कहा कि इस संकट की घड़ी में सरकार किसानों के साथ है और सरकार संवेदना के साथ उनकी मदद करेगी। फसल तबाह होने के इतने दिन बाद मोदी की ओर से महज आश्वासन दिया जाना चुस्त-दुरुस्त ढंग से सरकार चलाने वाले प्रशासक की उनकी छवि (प्रोजेक्टेड) को सवालों के घेरे में लाने वाला है। बेमौसम बारिश में फसलों का तबाह होना एक प्राकृतिक आपदा है और प्राकृतिक आपदा में तत्काल तेजी से कदम उठाए जाते हैं। ऐसे में होना तो यह चाहिए था कि संवेदना जताने और साथ खड़े होने का आश्वासन देने के बजाय मोदी किसानों को ठोस रूप से बताते कि ‘गुड गवर्नेंस’ का दंभ भरने वाली उनकी सरकार ने अब तक इस दिशा में क्या-क्या कदम उठाए हैं। पर ऐसा न करके वह महज किसानों को भरमाते नजर आए। जिस समय मोदी मन की बात में किसानों के दर्द को महसूस करने की बात कह रहे थे। ठीक उसी समय उत्तर प्रदेश में दो किसानों ने खुद को आग लगाकर अपनी जीवन लीला समाप्त करने की कोशिश की। बांदा जिले के यह दोनों किसान चचेरे भाई हैं। दोनों ने अपने खेत की सिंचाई के लिए कर्ज लिया था। फसल भी अच्छी हुई, लेकन बिन मौसम बरसात ने दोनों की फसल को बर्बाद कर दिया। सियासत के दस्तूर में भाजपा और मोदी इसका ठीकरा प्रदेश की सपा सरकार पर फोड़ सकते हैं, पर किसान तो एमपी, राजस्‍थान, महाराष्ट्र और हरियाणा में भी इसी तरह परेशान हैं, जहां भाजपा की सरकार है। वहां की सरकारों ने किसानों के लिए क्या कर दिया भला? मोदी ने किसानों से कहा कि भूमि अधिग्रहण बिल को लेकर भ्रम फैलाया जा रहा है। मोदी ने कहा कि भूमि अधिग्रहण बिल पर विरोध किसानों को गरीब रखने की साजिश है। हमने एक अथॉरिटी बनाई है जो जिले के किसानों की समस्याओं का समाधान जिले में ही करेगी। वहां अगर संतोष नहीं होता, तो कोर्ट जा सकते हैं। इसमें कौन सा नया या बड़ा काम कर दिया उन्होंने पहले भी इन मामलों का निपटारा स्‍थानीय स्तर पर जिला प्रशासन द्वारा किया जाता था और इसके खिलाफ कोर्ट जाने का अधिकार किसानों को पहले भी था। मोदी ने भला इसमें किसानों को क्या सौगात दे दी, कोर्ट में मामला दाखिल करने का तो हर किसी को कानूनी हक है। अब इसका श्रेय भी मोदी अपनी झोली में डाल रहे हैं, तो यह हास्यास्पद ही है। उन्होंने कहा कि सड़क के बगल में सरकार इंडस्ट्रियल कॉरिडोर बनाती है, कॉरिडोर के नजदीक में जितने गांव आएंगे उनको वहां कोई न कोई, वहां रोजी रोटी का अवसर मिल जाएगा, उनके बच्चों को रोजगार मिल जाएगा। यह बात भी कोई नई नहीं है। किसी भी परियोजना में विस्‍थापितों के परिवार और स्‍थानीय लोगों को एक निश्चित अनुपात में रोजगार देने की बात पर ही आमतौर पर भूमि अधिग्रहण का करार होता है। ऐसे में मोदी की बातें किसानों का दर्द समझने वाली कम और उन्हें मुगालते में रखने वाली ज्यादा लगती हैं। उधर राजद के राष्ट्रीय अध्यक्ष लालू प्रसाद ने भी मोदी पर निशाना साधा है कि मोदी को मन की नहीं, काम की बात करनी चाहिए। रेडियो पर हवाई बातें करने से किसानों का भला नहीं होगा।