23 March 2015

कब सुलझेगी मोबाइल रेडिएशन से हो रही बीमारियों की गुत्‍थी

कॉरपोरेट सेक्टर किस तरह से अपने प्रतिकूल चीजों को दबवाता या ठंडे बस्ते में डलवा देता है इसका एक और उदाहरण मोबाइल रेडिएशन के मामले में देखने को मिल रहा है। मोबाइल फोन और टावरों से निकलने वाले विकिरण के चलते कैंसर, ट्यूमर, माइग्रेन और मानसिक विकार की बढ़ती लगातार बढ़ती शिकायतों के बावजूद तमाम वैज्ञानिक संस्‍थाओं की ओर से इस मसले पर क्लीन चिट मिली हुई है। 
मोबाइल के इस्तेमाल से स्वास्थ्य पर बुरे प्रभाव पड़ने को लेकर देश-दुनिया में जारी बहस के बीच देश में एडवांस मेडिकल रिसर्च करने वाले संस्थान इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (आईसीएमआर) ने इस आशंका को नकार दिया है। आईसीएमआर का कहना है कि इस बात के कोई प्रमाण नहीं मिले हैं कि मोबाइल फोन का ज्यादा इस्तेमाल सेहत को नुकसान पहुंचाता है। मोबाइल फोन और टावरों से सेहत पर पड़ने वाले कुप्रभावों का मसला हाल ही में संसद में भी उठा। बजट सत्र के दौरान इस बारे में सदन में पूछे गए एक सवाल के जवाब में स्वास्थ्य और परिवार कल्याण राज्य मंत्री श्रीपाद नाइक ने आईसीएमआर के अध्ययन का हवाला देते हुए बताया है कि रिपोर्ट के मुताबिक मोबाइल फोन के इस्तेमाल किसी प्रकार की शारीरिक या दिमागी बीमारी होने के कोई  प्रमाण नहीं मिले हैं।  
नाइक ने अपने जवाब में बताया कि आईसीएमआर रिपोर्ट के अनुसार इस बात के वैज्ञानिक प्रमाण नहीं हैं कि मोबाइल फोन से निकलने वाले विद्युत चुंबकीय विकिरण (इलेक्ट्रो मैग्नेटिक रेडिएशन) के  कारण कैंसर, ट्यूमर, मानसिक असंतुलन, पागलपन, सिरदर्द की समस्या होती या डीएनए पर इसका असर पड़ता है। मोबाइल फोन और मोबाइल टावरों के चलते लोगों के स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ने की धारण भ्रामक प्रचार के चलते प्रचलित हुई है और इसका कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है। दुनिया के कई देशों में विभिन्न स्वास्थ्य निकायों की ओर से किए गए स्वतंत्र वैज्ञानिक अध्ययनों में भी अबतक इन आरोपों के सच होने का कोई मामला समाने नहीं आया है। यहां तक कि विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्लूएचओ) की ओर से वर्ष 2006 में जारी एक रिपोर्ट में कहा गया है कि इस बात का विश्वसनीय प्रमाण नहीं है कि वायरलेस नेटवर्क और उसके बेस स्टेशनों से निकलने वाली इलेक्ट्रोमैग्नेटिक रेडियो तरंगों का स्वास्थ्य पर कोई प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। 
यहां गौरतलब यह है कि वर्ष 2000 से लेकर 31 मई 2011 तक प्रकाशित रिपोर्टों के आधार पर डब्लूएचओ ने वायरलेस फोन से निकलने वाली तरंगों को संभावित कैंसरकारक समूह 2बी श्रेणी में रखा है। इसे देखते हुए भारत सहित दुनिया के कई देशों ने सेल फोन से निकलने वाली इलेक्ट्रोमैग्नेटिक तरंगों को लेकर सुरक्षात्मक दिशा-निर्देश तैयार किए हैं। भारत में भी यह मानक तैयार किए गए हैं, जो इंटरनेशनल कमीशन ऑन नॉन-आयनाइजिंग रेडिएशन प्रोटेक्शन (आईसीएनआईआरपी) की सिफारिशों पर आधारित हैं और इन्हें डब्लूएचओ की स्वीकृति भी प्राप्त है।

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